शब्द ब्रह्म
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माँ, माँ है पर कभी-कभी माँ, अपने ममत्व को भूल जाती है,
पूजा-पाठ करती है देवी माँ की, पर देवी को ही भूल जाती है,
महीनों जलाए थे चिराग माँ ने मंदिर में चिराग की लालसा में,
मैं और उसकी बहू भी जल रहे थे, कुलदीपक की कुंठित आशा में,
एक दिन माँ ने घर में जलते चिराग से एक माँ को भी जला दिया,
मैंने भी बेटे का फर्ज निभाते हुए, बेटे की चाहत में माँ का साथ दिया,
वह माँ जो चिराग नहीं दे सकी थी, जलते हुए कह गई,
मुझे जला दिया पर मेरी बेटियों पर रहम करना माँ,
नहीं तो दुनिया में न बचेगी माँ और न ही वह बेटा जो कहे माँ, माँ, माँ।
-प्रभाकर पांडेय ‘गोपालपुरिया’
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